तो बात हो रही थी उन मोहतरमा की. अब रिश्ते में तो हम इन मोहतरमा के जीजा लगते हैं, और नाम है .......... अरे नहीं, शहंशाह नहीं है. विडम्ब्ना ये है कि हम जिन सालियों के जीजा लगते हैं, वो सब हमे भइया बुलाती हैं. इस सब के पीछे बड़ी लम्बी कहानी है. खैर जाने दो..... बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी। पर ये मोहतरमा बहुत ही गुणी हैं. इनके ब्लॉग की शुरुवात भी देखी और लगे हाथ इनके ब्लॉग पर पहला पहला कमेंट भी चिपका दिया। शायद अब इनसे कुछ नया सीखने को मिलेगा। और सीखने में तो हम शुरू से ही आगे रहे हैं. सीखने का क्या है, किसी भी उम्र में सीखा जा सकता है. और अभी हमारी उम्र ही क्या है.
तो सज्जनों, आज के लिए इतना ही. जल्द ही मिलूंगा अपने स्कूल टाइम के दोस्तों के व्हाट्सएप्प ग्रुप के बारे में बताने के लिये। तब तक के लिए..... स्वस्थ रहें.... मस्त रहें......
2 टिप्पणियां:
वाह क्या बात!!! बहुत ख़ुशी हुई, आपके ब्लॉग को देखकर भी और पहला पोस्ट पढ़कर भी. बहुत धन्यवाद हमें इसका हिस्सा (और किस्सा) बनाने के लिए। आगे भी आपको परेशान करती रहूंगी, ये तो आपको पता ही होगा।
Wah PP tumhari shayari to school grp me jab tab enjoy karte hi rehte ha ab blog bhi enjoy karne ko milega ������
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