मंगलवार, 29 मई 2007

सफ़ाई का सिलसिला

मैं और मेरी बीवी,
अक्सर यह बातें करते हैं
घर साफ होता तो कैसा होता
मैं किचन साफ करता ,
तुम बाथरूम धोती
मैं हॉल साफ करता ,
तुम बालकनी से देखती
लोग इस बात पे हैराँ होते
और उस बात पे हँसते ..

मैं और मेरी बीवी ,
अक्सर यह बातें करते हैं



यह हरा भरा सिंक है
या बर्तनों की जंग छिड़ी है
यह कलरफुल किचन है
या मसालों से होली खेली है
है फर्श की नयी डिज़ाइन
या दूध , बियर से धुली हैं

टॉमी की ये हालत ,
मेरी भी है , उसकी भी ,
दिल में एक तस्वीर इधर भी है , उधर भी
करने को बहुत कुछ है मगर कब करे हम
कब तक यूँ ही इस तरह रहे हम

दिल कहता है की कोई वैक्यूम क्लिनर ला दे
ये कार्पेट जो है उसे फिकवा दे ,
हम साफ रह सकते है ,
लोगों को बता दें ,
हाँ हम
मियाँ बीवी है - मियां बीवी है - मियां बीवी है


अब दिल मैं यही बात ,
इधर भी है उधर भी ......
सब को बतादें !

मैं और मेरी बीवी , अक्सर यह बातें करते हैं !

2 टिप्‍पणियां:

Payal ने कहा…

Likhne ke pehle didi ko padaya tha na.

Sanjay Chandel ने कहा…

बहुत अच्छी कविता है. क़िसने लिखी है? आप् ने?